
आंतों की सूजन एक स्वास्थ्य की समस्या है जिसे पोल्ट्री निर्माता के रूप में,आपको समझना चाहिए। आपको एहसास भी नहीं होगा कि कब यह आपके पोल्ट्री की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डल जाए।
आंतों की सूजन एक ऐसी स्थिति है जो एक पक्षी के गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट में खुरदरेपन का कारण बनती है, जिससे उसकी वृद्धि ,पोषक तत्वों को अवशोषित करने और और जेनेटिक क्षमता प्राप्त करने में बाधा आती है। आंतों की सूजन संक्रमण, ट्रॉमा , लड़ाई, पत्थर लगने और अन्य पर्यावरणीय कारणों से हो सकती है। लेकिन मुख्य कारणों में से एक कारण पक्षी की खुराक है ,क्यूंकि कुछ भोजन सामग्री जैसे कि सोयाबीन भोजन, आंतों में गड़बड़ी का कारण बन सकती है , जिससे सूजन हो सकती है। अतीत में, पोल्ट्री उत्पादकों द्वारा अच्छे स्वास्थ्य, सुविधा और समग्र प्रबंधन के लिए एंटीबायोटिक दवाओं पर भरोसा किया जाता था । एंटीबायोटिक्स के उपयोग पर प्रतिबंध के साथ, आंतों में सूजन जैसी स्वास्थ्य स्थितियां एक मुद्दे का विषय बन जाएंगी।
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सूजन के कारण आंत में रिसाव होता है
इन्टेस्टीनल ट्रैक्ट की लाइनिंग पर एपिथेलियल कोशिकाओं की एक परत होती है। ये कोशिकाएं काम्प्लेक्स प्रोटीन संरचनाओं द्वारा एक दूसरे से जुड़े होते हैं, जिन्हें “तंग जंक्शन” कहा जाता है, और उनका कार्य इन्टेस्टीनल लाइनिंग और रक्तप्रवाह में कीटाणु ,पैथोजन , विषैले पदार्थ को गुजरने से रोकने का होता है। गर्मी का तनाव, बैक्टीरिया, प्रदूषक आदि जैसे कारक, तंग जंक्शनों की गुणवत्ता को कमजोर कर सकते हैं, जिनके कारण “लीकी गट” नामक एक बीमारी होती है। नकारात्मक प्रभाव – लीकी गट –बैक्टीरिया, पैथोजन और उनके विषाक्त पदार्थ, जैसे अणुओं को एपिथेलियल कोशिकाओं के बीच से गुजरने की अनुमति देता है जिसके परिणामस्वरूप आंत की कोशिका को क्षति पहुंचती है या सूजन हो होती है। यह सूजन प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर करेगी ताकि सूजन से निपटने के लिए पोषक तत्वों के महत्वपूर्ण स्तर का उपभोग किया जा सके और मांसपेशियों की वृद्धि के लिए उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा को कम किया जा सके।
आंतों की सूजन की पहचान करना
आंतों की सूजन के कुछ दृश्य संकेतक हैं: ढीली बीठ , कूड़े खराब की गुणवत्ता, खुरदरे पंख, पूंछ के नीचे गंदे पंख, फ़ीड का सेवन कम हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप धीमी विकास दर और फ़ीड रूपांतरण दर अधिक होती है। कूड़ा सूखे और जमे हुए से नम और चिकने मे बदल जाता है, जिससे यह पता चलता है कि पक्षी की पाचन प्रणाली पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर रही है।
तारिणी 1 – आवेला जेड एन और जिंक सल्फेट परीक्षण परिणाम का सारांक्ष
आवेला जेड | जिंक सल्फेट | |
जीवित वजन (36 दिन) | 2456 ग्राम | 2424 ग्राम |
फ़ीड रूपांतरण दर (28 दिन) | 1.393 ग्राम | 1.411 ग्राम |
मृत्यु दर (36 दिन) | 6.40% | 7.20% |
जिंक कि पाचनशक्ति | 36.40% | 32.70% |
आँतों विलेन्स की लंबाई (10 दिन) | 1308.6 .2 µm | 1206.2 µm |
आँतों विलेन्स की लंबाई (28 दिन) | 1206.2 µm | 1206.2 µm |
बचे-खुचे खनिज का कार्य पर महत्व
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि ज़िंक की कमी होने पर आंत में तंग जंक्शनों का कमजोर होना अधिक गंभीर हो जाता है। आंत में उपस्तिथत अंगों,टिशुस ,मोलेक्युल्स एवं एपिथीलियल कोशिकाएं की बनावट के लिए ज़िंक महत्वपूर्ण है। बचा -खुचा खनिज , जैसे जिंक ,उन प्रमुख पोषक तत्वों में से एक हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए सिद्ध हुए हैं। ऊर्जा या अमीनो एसिड की तुलना में, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की मांग बचे-खुचे खनिज में दूसरे पौष्टिक तत्वों के मुकाबले अधिक होती है। और इसका कारण यह है कि वे प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पादित बहुत सारे एंजाइम और सुरक्षात्मक प्रोटीन के लिए सहकारक हैं ।
अतीत में, पोल्ट्री उत्पाद बैक्टीरिया, रोगज़नक़ और व्युत्पन्न विषाक्त पदार्थों की चुनौतियों से लड़ने में मदद करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग कर सकते थे। हो सकता है कि कई अन्य मामलों में, एंटीबायोटिक्स से आंतों की सूजन के अन्य महत्वपूर्ण कारण छुप जाते हों ।
जिंपरो कारपोरेशन ने बेल्जियम में स्थित गेन्ट विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इलवो एनिमल साइंस के सहयोग से एक खोज पर पूँजी लगायी , जिसका मकसद डायविओसिस – माइक्रोबियल असंतुलन – पोषण के माध्यम से गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट में होने पर ब्रायलर के आंतों के स्वास्थ्य और उत्पादन पर अवेला- जेड एन का क्या प्रभाव पडता है । अध्ययन में डिस्बिओसिस से ग्रसित 680 नर ब्रॉयलर लिए गए । उनमें से 340 को 60 पीपीएम जिंक सल्फेट दिया गया , और अन्य 340 पक्षियों को 36 दिनों की उम्र तक अवेला-जेडएन से 60 पीपीएम जिंक दिया गया । डिबिओसिस में .पक्षियों को उच्च दर में रूखे कच्चे माल को लेने के लिए मज़बूर किया गया , जैसे कि बिना स्टार्च पॉलीसेकेराइड (एनएसपी) एंजाइमों के राई ।
खोज से पता चला है कि अवेला- जेडएन से जिंक खिलाने से जिंक की पाचनशक्ति, ऑक्सीडेटिव स्थिति और आंतों की संरचना को संरक्षित करने पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ा। साथ ही, 28 दिनों की उम्र में, अवेला- जेडएन के प्रयोग से फ़ीड रूपांतरण अनुपात में लाभ था। पोल्ट्री आहार में अवेला-जेड एन से जिंक को शामिल करके निर्माता, ब्रायलर मुर्गियों में आंतों की सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं। इससे मृत्यु दर कम होती है, आंतों की अखंडता में वृद्धि होती है और बैक्टीरिया, पैथोजन या टॉक्सीन चुनौती के लिए अधिक मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होती है, जिससे पक्षियों को कार्य में बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद मिलती है।
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Kishor
Good